जिले की आबो हवा हो चुकी है प्रदूषित, प्रदूषित हवा दमा और सांस संबंधी रोगियों के लिए खतरनाक
कोरबा। कोयला खदान और इंडस्ट्रियल एरिया होने के चलते कोरबा की हवा प्रदूषित है। पॉल्यूशन कंट्रोल बार्ड जो आंकड़े जारी कर रही है उससे पता चलता है कि सुबह और दोपहर की हवा का स्तर नुकसान पहुंचाने वाला है। कोरबा जिले का एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार घटता बढ़ता रहता है। ठंड के मौसम में बारीक कण हवा में जम जाते हैं। हवा में जमें ये बारीक कण एयर क्वालिटी को खराब करते हैं। हवा में स्मॉग का निर्माण भी होता है। इस मौसम में ऐसी प्रदूषित हवा दमा और सांस संबंधी रोगियों के लिए खतरनाक साबित होता है। दीपावली और इसके बाद खास तौर पर खदान वाले इलाकों की हवा ज्यादा प्रदूषित पाई गई है। प्रदूषण का यह स्तर घटता बढ़ता रहता है। पर्यावरण विभाग की मानें तो सर्दी के मौसम में हवा की क्वालिटी खराब जरूर रहती है, लेकिन वर्तमान की स्थिति संतोषजनक है। इधर शहर की हवा खराब होने से दमा के मरीजों की संख्या में इजाफा होने लगा है। खदान वाले इलाकों के साथ ही कोल और फ्लाई एश यानि राख के डस्ट जिले में प्रदूषण का बड़ा कारण रहे हैं। कोरबा और गेवरा-दीपका में पीएम-10 और पीएम-2.5 का स्तर सामान्य से ज्यादा रहा है। हवा में प्रदूषण से ठंड में कई तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। दमा के मरीजों को सांस लेने में तकलीफ और कई अन्य परेशानियां होती हैं। गेवरा अब दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खदान के रुप में जाना जाता है। दीपका भी बड़ा कोयला उत्पादक खदान है। कोयला खनन और परिवहन में एसईसीएल का प्रबंधन भारी भरकम मशीनों का इस्तेमाल करता है। रेल के साथ सडक़ मार्ग से भी कोयला ट्रांसपोर्ट किया जाता है। कोयले लदे भारी भरकम वाहन हवा को और प्रदूषित करते हैं। गाडिय़ों से उडऩे वाले महीन धूल कण सांसों के जरिए फेफड़े तक पहुंच जाते हैं। हवा की गुणवत्ता 75 से कम रहने पर इसे संतोषजनक माना जाता है, जबकि 100 के आसपास हवा घातक हो जाती है. ्रक्तढ्ढ 100 या इससे ज्यादा होने पर इसे पर्यावरण और मानव के लिए घातक माना जाता है। 200 से ऊपर होने पर सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है। पॉल्यूशन स्तर जानने के लिए एक मशीन क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी के कार्यालय परिसर में लगी है। मशीन शहर के मुख्य मार्ग से काफी दूर है। इसके बावजूद यह मशीन जो आंकड़े जारी कर रही है, उससे पता चलता है कि शहर में हवा की गुणवत्ता ठीक नहीं है। पीएम-10 और 2.5 की वृद्धि से लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। चिकित्सक बताते हैं कि इंडस्ट्रियल जिला होने के कारण कोरबा जिले में हवा के गुणवत्ता खराब रहती है। सर्दी के मौसम में स्मॉग का बनता है जिससे हवा में सांस लेना मुश्किल होता है। ऐसे मौसम में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। सांस से संबंधित सभी रोगों के मरीज फिलहाल अधिक तादाद में सामने आए हैं। पीएम-10 छोटे-छोटे कण होते हैं, जो नाक और गले से होकर फेफड़ों में समा जाते हैं और फेफड़े को प्रभावित करते हैं। दमा से पीडि़त मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है।पीएम-2.5 पीएम-10 से भी छोटा होता है और यह फेफड़ों के जरिए रक्त कोशिकाओं तक समा जाता है। इन कणों से आंख, नाक और गले में जलन होती है. इस मौसम में लोगों का अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। धूप निकलने के पहले मॉर्निंग वॉक नहीं करना चाहिए। मास्क का उपयोग करते हुए बाहर निकलना चाहिए।