Thursday, March 20, 2025

नौनिहालों पर बढऩे लगा बस्तों का बोझ,कमीशन के खेल ने बढ़ाया बच्चों की पीठ पर भार

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नौनिहालों पर बढऩे लगा बस्तों का बोझ,कमीशन के खेल ने बढ़ाया बच्चों की पीठ पर भार

कोरबा। नौनिहालों पर बस्तों का बोझ बढने लगा है। उनकी उम्र से आधा बैग का बोझ पीठ पर है। 6 से आठ किलो लाद कर बच्चे स्कूल जा रहे हैं। जितना बड़ा स्कूल उतना बड़ा बैग। पुस्तक दुकानों व स्कूलों के बीच के कमीशन ने बच्चों का बोझ बढ़ा दिया है। संबंधित पब्लिकेशन की किताबें खरीदने पर एक तय कमीशन की सौदेबाजी होती है। अभिभावकों को एक ही दुकान से किताबें खरीदने को कहा जाता है। हर क्लास के लिए बंडल पहले ही तैयार रखा जाता है। इनके दाम भी बेहद ज्यादा होते हैं। इस बंडल में स्कूल के लिए अलग व घर के लिए अलग किताब व नोटबुक होते हैं। कई तो गैरजरूरी होते हैं। जिन्हें अभिभावकों को मजबूरन खरीदना पड़ता है। जिले के निजी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों का वजन और बस्ते के वजन से उनकी तुलना करने पर बोझ पता चलता है। तीसरी से छठवीं तक के बच्चे अपने कुल वजन के 25-30 प्रतिशत से भी ज्यादा का हिस्सा हर रोज स्कूल बैग के रूप में ढोकर विद्यालय जा रहे हैं। एक ही क्लास की किताबों का वजन स्कूल बदलने पर अलग-अलग हो जाता है। हर स्कूल अपने अनुसार किताबें खरीदवाते हैं। जिसके कारण हर स्कूल में कई तरह की किताबों से अध्यापन होता है। जिसके कारण ही कक्षा के स्कूल बैग का वजन स्कूल बदलने पर बदल जाता है।चिकित्सक कहते हैं कि शरीर के वजन की तुलना में 10 से 15 फीसदी ही बैग का वजन होना चाहिए। जब एक भारी बैग को कंधे से गलत तरीके से उठाया जाता है तो कंधे पर बोझ बढ़ता है। इसलिए इस तरह के उपाय करना जरूरी है। एक लाइटवेट बैग ही बच्चों के लिए लेना चाहिए, जो खुद भारी ना हो।बैग में कमर बेल्ट होनी चाहिए। इसका उपयोग करने से पूरे शरीर में अधिक समान रूप से वजन को वितरित करने में मदद करेगा।बैग को पूरे दिन की पुस्तकों को ले जाने की बजाएं बच्चों को स्कूल में इसकी सुविधा मिलनी चाहिए कि वह पुस्तकें रखे सके।

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