प्राकृतिक दवाईयों का इस्तेमाल कर हो रही खेती, बाजार से न खरीदकर स्थानीय स्तर पर ही बना रहे खाद
कोरबा। प्राकृतिक खेती के परिणाम उत्साहजनक रहने के बाद विकासखंड करतला के और गांवों में इसका विस्तार किया जा रहा है। 48 गांव में 75 एकड़ जमीन पर इसकी खेती इस बार शुरू हुई है। खेतों में लगने वाले कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए प्राकृतिक दवाईयों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे बाजार से न खरीदकर स्थानीय स्तर पर ही बनाया जा रहा है। इस कार्य के लिए विकासखंड करतला के ग्राम नवापारा में बॉयो रिसर्च सेंटर खोला गया है। इस सेंटर में किसानों को प्राकृतिक खाद व दवाईयां बनाने का तरीका बताया जा रहा है। इसके निर्माण में 10 प्रकार के कड़वे पत्ते व गौमूत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है।इस खाद व दवाईयों के इस्तेमाल से उत्पादन लागत जहां एक ओर कम हुआ है वहीं दूसरी ओर रसायनिक खाद के जरिए फसलों के उत्पादन से भी किसान प्रारंभिक तौर पर थोड़ा-थोड़ा दूर हो रहे हैं। बताया जाता है कि नवापारा में स्थापित बॉयो रिसर्च सेंटर की स्थापना के लिए नाबार्ड ने आर्थिक तौर पर सहयोग किया है। इस सेंटर में ग्राम रामपुर, नोनदरहा, नोनबिर्रा, जोगीपाली, बांधापाली, घिनारा, बिंझकोट के उन किसानों को प्राकृतिक तरीके से खाद व दवाईयां बनाने के लिए सिखाया जा रहा है जो इसमें रूचि ले रहे हैं। इस बार 48 किसानों ने प्राकृतिक तरीके से 75 एकड़ जमीन पर खेती शुरू की है। जमीन पर धान के अलावा मूंग, उड़द, तील, मूंगफली, अरहर जैसे फसलों की खेती कर रहे हैं। इन खेतों में उत्पादन बढ़ाने व कीटनाशक के तौर पर दवाईयां बनाने का तरीका बॉयो रिसर्च सेंटर में सिखाया जा रहा है। करतला विकासखंड में संचालित महामाया सहकारी समिति के 30 किसानों का चयन इस खेती के लिए पहले चरण में किया गया था। प्रशिक्षण के जरिए प्राकृतिक खेती का तरीका सिखाया गया। इसके तहत किसानों को जीवोपचार, बीजोपचार, निमास्त्र आदि के जरिए बीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और फसल के लिए नुकसानदेह खेत के कीड़ों को मारने का तरीका बताया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहले साल समूह के 30 किसानों से 30 एकड़ जमीन पर जावा चावल, अदरक, हल्दी, उड़ई और सब्जी की खेती कराई गई है। फसल की बोआई से लेकर कटाई तक विश्लेषण किया गया है। इसमें पाया गया है कि बीजोपचार और जीवोपचार के बाद धान की फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई है। इस फसल को धान में होने वाली कोई भी बीमारी नहीं लगी। प्रति एकड़ औसत 12 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ है। खेती के परिणाम उत्साहजनक आए हैं।