Thursday, February 13, 2025

वेतन समझौता को लेकर हाईकोर्ट के फैसले से बढ़ी कर्मियों की चिंता, एचएमएस उच्च न्यायालय के डबल बेंच के समक्ष दायर करेगा रिट

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वेतन समझौता को लेकर हाईकोर्ट के फैसले से बढ़ी कर्मियों की चिंता, एचएमएस उच्च न्यायालय के डबल बेंच के समक्ष दायर करेगा रिट

कोरबा। हिंद खदान मजदूर फेडेरेशन (एचएमएस) के अध्यक्ष नाथूलाल पांडेय ने कोयला कामगारों को खुला पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि एनसीडब्ल्यूए- 11 के तहत श्रमिकों को वेतन मिलना प्रारम्भ हुआ है। एरियर भुगतान भी मिला है। सभी श्रमिक बंधुओं को आश्वस्त करना चाहता हूं कि एनसीडब्ल्यूए- 11 के तहत बढ़ा हुआ वेतन बंद नहीं हो और एरियर भुगतान वापस न हो, इसके लिये संगठन हर सम्भव प्रयास करेगा। जल्द ही संगठन उच्च न्यायालय के डबल बेंच के समक्ष रिट अपील दायर कर सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देगा। हालांकि कोर्ट के फैसले के बाद कर्मियों की टेंशन बढ़ गई है।पत्र में उन्होंने एनसीडब्ल्यूए- 11 के मामले में आए कोर्ट के फैसले को लेकर बनाई रणनीति का भी खुलासा किया है। अन्य श्रमिक संगठनों, प्रबंधन और केंद्र सरकार को भी आड़े हाथों लिया है। नाथूलाल पांडेय ने कहा है कि कोल इंडिया के अधिकारियों द्वारा एनसीडब्ल्यूए- 11 को रद्द करने के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दाखिल रिट याचिका में उच्च न्यायालय ने अपने 29 अगस्त, 2023 के आदेश के तहत कोयला मंत्रालय द्वारा जारी 20 जून, 2023 को जारी अनुमोदन पत्र को रद्द कर दिया।
यह निर्देश जारी किया कि जेबीसीसीआई -11 में शामिल सभी श्रम संघों, आवेदक अधिकारियों सहित सब को सुनकर लोक उद्यम विभाग (डीपीई) को यह निष्कर्ष पर पहुंचना है कि एनसीडब्ल्यूए- 11 को अंतिम रूप देते समय डीपीई की गाइडलाइन का उल्लंघन नहीं हुआ है। तब कोयला मंत्रालय को अधिकार होगा कि अनुमोदन के लिए आदेश पारित करें। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात का भी उल्लेख किया है कि अधिकारियों द्वारा एनसीडब्ल्यूए- 11 में शामिल किसी भी श्रम संगठन को पार्टी नहीं बनाया गया था। केवल हिंद खदान मजदूर फेडेरेशन ही इंटरवीनर के माध्यम से सुनवाई में शामिल हुआ। कोल इंडिया प्रबंधन ने न्यायालय को बताया कि उसने कोयला मंत्रालय से अनुमति प्राप्त की थी। लोक उद्यम विभाग (डीपीई), भारत सरकार को पत्र भी लिखा था। पांडेय ने कहा है कि अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार ने एनसीडब्ल्यूए- 11 को अनुमोदन क्यों नहीं दिया । कोयला श्रमिकों सहित भारत के अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के श्रमिकों के वेतन को 10 साल तक बढ़ने से रोकने के लिए डीपीई के माध्यम से ऐसी गाइडलाइन क्यों जारी की? कोई भी गाइडलाइन जारी करने से पहले भारत सरकार को यह ध्यान रखना चाहिये था कि अधिकारियों के वेतनमान की 10 साल की अवधि के बीच, श्रमिकों के वेतन का 5- 5 साल में रिव्यू (समीक्षा) होना तय है। यह जगजाहिर है कि भारत सरकार सार्वजनिक उद्योग के श्रमिकों के प्रति सौतेला व्यवहार रखती है। जहां तक उच्च न्यायालय के आदेश का प्रश्न है, उस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा। वहां मैं इंटरवीनर बना था। न्यायालय के समक्ष प्रतिवेदन किया था कि अधिकारियों का वेतनमान अलग होता है और मजदूरों का अलग है।अधिकारियों ने 10 साल की अवधि स्वीकार की, जबकि श्रमिकों ने 5 साल की अवधि को स्वीकार कि?या। यह क्रम 1995 से लागू है। शुरुआत में श्रमिकों का वेतन कुछ अधिक रहता है, किंतु बाद में अधिकारियों का वेतन श्रमिकों के वेतन से कई गुना अधिक हो जाता है। पांडेय ने लिखा है कि क्या अधिकारी इसके लिये तैयार है कि जब उनके वेतन की समीक्षा के समय ई 2 का वेतन कटेगरी 1 और ई 9 का वेतन कटेगरी ए 1 से अधिक नहीं किया जाए। वे कभी इसके लिये तैयार नहीं होंगे। तुलना बराबर में ही होती है।नाथूलाल ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि सरकार के रवैये को अन्य श्रम संगठन भी समझेंगे। आपसी मतभेद को दरकिनार कर कोयला श्रमिकों के साथ हो रहे घोर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए सब एक साथ प्रण लेंगे।

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