Wednesday, October 15, 2025

शिक्षिका मधुलिका ने सरकारी स्कूल के बच्चों को बनाया हुनरमंद, बच्चों के साथ मिलकर बदल दी स्कूल की तस्वीर

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शिक्षिका मधुलिका ने सरकारी स्कूल के बच्चों को बनाया हुनरमंद, बच्चों के साथ मिलकर बदल दी स्कूल की तस्वीर

कोरबा। शिक्षा का मंदिर जितना स्वच्छ व आकर्षक होगा वहां पढ़ने वाले बच्चों विकास भी उसी अनुरूप होगा। इसके लिए जरुरी नहीं है कि शासकीय अनुदान से ही ऐसा वातावरण तैयार हो। यह साबित किया है कि करतला ब्लाक के गवर्नमेंट मिडिल स्कूल जमनीपाली की शिक्षिका मधुलिका दुबे ने। इन्होंने अपनी सोच को नवाचार के रूप में अपनाते हुए छात्रों की मदद से स्कूल का स्वरूप बदल दी हैं, जिसके कारण वहां अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की उपस्थिति शत प्रतिशत बनी रहती है। यह प्रयोग उन्होंने ललित कला और बचपन के तहत किया है। छात्रों को नवाचार सीखने का अवसर देने के लिए ललित का चुनाव करते हुए छात्रों द्वारा स्कूल को आकर्षक व सुंदर बनाने के लिए सोयाबीन की बड़ी, ऊन, पुराने कागज, सीपी, घोंघा और मटर के दानें, ड्राइंग सीट आदि वस्तुओं का प्रयोग कर छात्रों को सिखाते हुए और उनके हुनर को सामने लाकर विद्यालय को सजाने का एक अभिनव प्रयास किया है। इसका लाभ यह हुआ है कि बच्चों ने अपने ललित कला के इस हुनर को आगे चलकर रोजगार के रूप में भी बदल सकते हैं। शिक्षिका दुबे ने बताया कि ललित कला का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसका क्षेत्र भी व्यापक रहा है। चाहे सिंधु घाटी की सभ्यता में अलंकृत आभूषण हों या मिट्टी के बर्तन पर लेप या वैदिक काल में लोक संस्कृति हो या गुप्त काल में काष्ठ शिल्प, पाषाण शिल्प हों, मध्यकाल में हाथी दांत की कारीगरी, कशीदाकारी, महल मीनार, मेहराब आदि ललित कला की महत्ता को प्रतिपादित करते आ रहे हैं। छात्र व शिक्षक की सोच को अगर परखना है तो उसके लिए इस स्कूल तक जाना होगा। शिक्षिका दुबे ने बताया कि स्कूल के बच्चों को पहले प्रशिक्षित किया, फिर उन्हीं से आकृतियां बनवाई गई। जिसमें कोयला से कोरबा का नक्शा, सोयाबीन बड़ी से ताजमहल, लालकिला, मयूर आदि बच्चों ने बनाए। अतिरिक्त समय निकालकर स्कूल के सहयोग और अपने शिक्षा समिति के सहयोग से आज ललित कला के क्षेत्र में मिडिल स्कूल जमनीपाली को एक नया मुकाम दिलाने में सफल हुए हैं। यही वजह है कि संकुल, ब्लाक, जिला व राज्य स्तर पर स्कूल की अलग पहचान मिली है। साथ भारत नवाचारी समूह ने ललिता कला में नवाचार का सम्मान भी इस स्कूल को दिए हैं। बच्चों में ललित कला से जहां शिक्षा के साथ कुछ अलग सीखने की ललक बनी रहती है वहीं बनाई गई आकृतियों से सांस्कृतिक संरक्षण का संदेश भी मिलता है। इससे छात्रों की रूचि आगे भी ललित कला में बनी रहेगी और वे इसे अपने कैरियर के लिए भी चुन सकेंगे।वर्तमान युग ग्लोबलाइजेशन का युग है, इसका प्रभाव स्कूली शिक्षा पर भी पड़ना स्वाभाविक है। विश्व में ललित कला को महत्व मिल रहा है। ललित कला का छात्र दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर कला सीख सकता है। स्थानीय कला, संस्कृति का संवर्धन कर सकता है। हमारे छात्र समाज में स्वयं को स्थापित कर सकते हैं।

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