Wednesday, August 20, 2025

खदानों के पास गांव, विस्तार पर विस्थापन का लटका रोड़ा, जमीन की किल्लत से कोयला उत्पादन में आई कमी

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खदानों के पास गांव, विस्तार पर विस्थापन का लटका रोड़ा, जमीन की किल्लत से कोयला उत्पादन में आई कमी

कोरबा। जमीन की किल्लत से कोयला उत्पादन में आई कमी का सबसे अधिक असर एसईसीएल की दीपका खदान पर पड़ रहा है। एसईसील का स्थानीय प्रबंधन ग्राम मलगांव की अधिग्रहित जमीन को खाली कराना चाहता है। खदान का विस्तार मलगांव बस्ती तक पहुंच गया है। इसके आगे कंपनी को काफी परेशानी हो रही है। हालांकि बारिश शुरू होने से पहले कंपनी ने इस गांव में कुछ मकानों को तोड़ा था। इससे खनन के लिए कुछ जमीन मिल गया था। मगर गतिरोध अभी भी बना हुआ है। ग्रामीणों ने बताया कि एसईसीएल की गेवरा प्रोजेक्ट ने ग्राम मलगांव की जमीन का अधिग्रहण किया है, 111 खातेदार प्रभावित हुए हैं। मलगांव की जमीन पर कोयला खनन के लिए गेवरा प्रबंधन ने दीपका को सौंप दिया है। गांव के करीब 100 लोगों को नौकरी और लगभग 73 लोगों के विस्थापन पर पेंच फंसा हुआ है। कुसमुंडा खदान में भी जमीन की समस्या गंभीर बनी हुई है। स्थिति मारपीट तक पहुंचने लगी है। हाल ही में कुसमुंडा में हुई मारपीट की घटना को भी जमीन विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। खदान से प्रभावित ग्रामीण कोयला कंपनी के प्रबंधन से रोजगार, नौकरी और पुनर्वास के अलावा मुआवजे की मांग कर रहे हैं जबकि रोजगार को लेकर पेंच फंसा हुआ है। भूविस्थापित चाहते हैं कि खदान के अंदर काम करने वाली ठेका कंपनियां सबसे पहले उन्हें और उनके परिवार को अस्थाई रोजगार का अवसर प्रदान करे। उनसे पद बचने पर ही दूसरे लोगों को लिया जाए। जबकि ठेका कंपनियां बाहरी मजदूरों को भरने पर ज्यादा जोर दे रही है। इसका बड़ा कारण तय मापदंड से वेतन कम देना है।
समस्या का समाधान नहीं होने से ग्रामीण नाराज
परिस्थितियां दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। इससे कोयला कंपनी का प्रबंधन और ग्रामीण आमने- सामने आ रहे हैं। इसके बीच टकराव की आशंका बनी हुई है। हाल ही कोयला सचिव ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया था। मुआवजा, पुनर्वास रोजगार के मुद्दे पर फंसा पेंच दूर नहीं हुआ है। इससे कोयला कंपनी को परेशानी उठानी पड़ रही है। समस्या समाधान के लिए प्रशासन की ओर से खदान से प्रभावित गांवों में शिविर लगाई जा रही है। शिविर के जरिए प्रशासन यह बताने की कोशिश कर रहा है कि समस्या के निराकरण में देरी कंपनी की ओर से की जा रही है, न कि प्रशासन की ओर से। इससे ग्रामीणों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है और वे खनन के लिए जमीन देने को तैयार नहीं हैं।

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