Thursday, November 21, 2024

हाथी प्रभावित गावों में ग्रामीणों को करनी पड़ रही फसल की निगरानी, मचान बनाकर ग्रामीण कर रहे रखवाली

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हाथी प्रभावित गावों में ग्रामीणों को करनी पड़ रही फसल की निगरानी, मचान बनाकर ग्रामीण कर रहे रखवाली

कोरबा। साल भर की कमाई को हाथी कहीं पल भर में नष्ट न कर दें, इस आशंका से किसानों को अब जान हथेली पर लेकर खेतों की रखवाली करनी पड़ रही। करतला रेंज के चारमार, घोंटमार, कुदमुरा, बोतली, सुईआरा, घिनारा, मदवानी, पतरापाली, टेंगनमार, बोतली, तराईमार, चांपा जोगीपाली हाथी प्रभावित गांव में आते हैं। इसी तरह कटघोरा वनमंडल के पसान वन परिक्षेत्र से लगे बनिया, पनगंवा, परला, रोदे, अरसरा, सेमरहा, जलके आदि ऐसे गांव हैं जहां हाथी ज्यादातर समय रहते हैं। प्रभावित गांवों के किसानों ने पहले से ही पेड़ों पर मचान बना रखा है। शाम ढलने के पहले ही किसान भोजन का डिब्बा लेकर मचान पर चढ़ जाते हैं। धान की खड़ी फसल की कटाई में तेजी आ चुकी है। कोरबा व कटघोरा वनमंडल के पसान, करतला केंदई सहित विभिन्न हाथी प्रभावित रेंज के गांवों के किसानों की रातें अब मचान पर कट रही हैं। तैयार हो चुके फसलों को हाथी लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। जरा सी भी नजर हटी नहीं कि किसानों के फसल काटने से पहले हाथी का झुंड आ धमकता है और धान खा जाते हैं। इस वजह से जिन किसानों ने फसल की कटाई नहीं की है उन्हे और अधिक सतर्क होकर निगरानी करनी पड़ रही। धान की खेती के लिए इस बार मानसून का बेहतर साथ मिला है। मोटा धान की कटाई ने रफ्तार पकड़ ली है। वहीं पतला धान पकने के कगार में हैं। खड़ी फसल को चट करने इन दिनों हाथियों ने जंगल छोड़ गांवों के निकट डेरा डाल दिया हैं। इसके साथ हाथियों के पहुंच वाले डाल को काट देते ताकि सूंड से पकड़ कर हिला न सके। डाल में मजबूत चौगाने में ही खाट को मजबूती से बांधकर उसे इस लायक तैयार किया जाता है कि एक व्यक्ति जागते हुए रखवाली करे तो दूसरा सो सके। पहरेदारी का यह क्रम हर साल तब तक जारी रहता है जब तक धान की कटाई न हो जाए। करतला के अलावा कोरबा और लेमरू रेंज में भी कई जगहों में मचान बनाकर किसान खेतों की रखवाली कर रहे हैं। किसानों की माने तो जंगल से लगे खेतों में सुगंधित धान लगाने से वे बचते हैं। ऐसे भी सामान्य धान की अपनी अलग सुगंध होती है। फसल पकने में अभी पतला धान को समय लगेगा। ऐसे में वे किसान जिन्होने मोटा धान की बुआई की है वे पहले से कटाई कर लेते हैं। जिससे रखवालों की कमी होने पर समस्या होती हैं। ग्रामीणों ने बताया कि नुकसान को देखते हुए इस बार सभी किसानों ने फसल कटाई के अंत तक एक दूसरे की मदद करने का निर्णय लिया है।

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