लंबित रोजगार प्रकरणों के निराकरण के लिया 2 सितंबर तक फाइल भेजी जाएगी मुख्यालय, 10 दिनों में आश्वासन पर कार्य नहीं हुआ तो 5 सितंबर को होगा खदानबंदी
कोरबा। छत्तीसगढ़ किसान सभा और रोजगार एकता संघ द्वारा एसईसीएल के खदानों से प्रभावित भू विस्थापित किसानों की लंबित रोजगार प्रकरणों का तत्काल निराकरण की मांग को लेकर 23 अगस्त को कुसमुंडा सहित गेवरा दीपका खदान बंद करते हुए कार्यालय में प्रदर्शन की घोषणा की थी। आंदोलन से पहले ही एसईसीएल कुसमुंडा महाप्रबंधक राजीव सिंह ने बैठक बुलाई। बैठक में भू विस्थापितों के प्रतिनिधि मंडल के साथ बड़ी संख्या में भू विस्थापित उपस्थित थे। बैठक में सकारात्मक चर्चा के साथ 2 सितंबर तक भू विस्थापितों के फाइल को बिलासपुर मुख्यालय भेजने का आश्वाशन महाप्रबंधक ने दिया। उसके बाद भू विस्थापितों के प्रतिनिधिमंडल ने 23 अगस्त को खदान बंद हड़ताल को स्थागित करते हुए जल्द रोजगार की कार्यवाही नहीं होने पर 5 सितंबर को खदान में महाबंद की चेतावनी भी प्रबंधन को दी है। किसान सभा के प्रदेश संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने बैठक में कुसमुंडा महाप्रबंधक को कहा कि भू विस्थापितों को जबरन गुमराह किया जा रहा है और जमीन अधिग्रहण के बाद रोजगार से वंचित रखा गया है। सभी भू विस्थापित खातेदारों को रोजगार देना होगा। जिसपर कुसमुंडा महाप्रबंधक राजीव सिंह ने प्रतिनिधि मंडल को 2 सितंबर तक पुराने रोजगार प्रकरणों के फाइलों का निराकरण कर बिलासपुर मुख्यालय भेजने का आश्वाशन दिया। बैठक के बाद किसान सभा ने कहा कि भू विस्थापित रोजगार के लंबित प्रकरणों का निराकरण की मांग करते हुए थक गए हैं। अब अपने अधिकार को छिन कर लेने का समय आ गया है। विकास के नाम पर अपनी गांव और जमीन से बेदखल कर दिए गए विस्थापित परिवारों का जीवन स्तर सुधरने के बजाय और भी बदतर हो गया है। 40-50 वर्ष पहले कोयला उत्खनन करने के लिए किसानों की हजारों एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। कोयला खदानों के अस्तित्व में आ जाने के बाद विस्थापित किसानों और उनके परिवारों की सुध लेने की किसी सरकार और खुद एसईसीएल के पास समय ही नहीं है।पुराने लंबित रोजगार, को लेकर एसईसीएल गंभीर नहीं है किसान सभा भू विस्थापितों की समस्याओं को लेकर उग्र आंदोलन की तैयारी कर रही है। भूविस्थापित रोजगार एकता संघ के नेता ने रेशम यादव,दामोदर श्याम,सुमेन्द्र सिंह कंवर ठकराल ने बैठक में उपस्थित अधिकारियों से कहा कि भू विस्थापितों को बिना किसी शर्त के जमीन के बदले रोजगार देना होगा और वे अपने इस अधिकार के लिए अंतिम सांस तक लड़ेंगे। प्रबंधन के साथ सकारात्मक चर्चा के बाद आन्दोलन को स्थागित करने पर सहमति बनी है।