Saturday, July 5, 2025

152 काल्पनिक मकानों के कल्पनाकार आखिर कब होंगे बेनकाब, सूची में कई सफेदपोश और राजनीतिक दल, पहुंच वालों के शामिल होने की चर्चा, सवालों के घेरे में प्रशासनिक और एसईसीएल के अधिकारियों की भूमिका, केंद्रीय एजेंसियों से जांच की जरूरत

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152 काल्पनिक मकानों के कल्पनाकार आखिर कब होंगे बेनकाब, सूची में कई सफेदपोश और राजनीतिक दल, पहुंच वालों के शामिल होने की चर्चा, सवालों के घेरे में प्रशासनिक और एसईसीएल के अधिकारियों की भूमिका, केंद्रीय एजेंसियों से जांच की जरूरत,

कोरबा। एसईसीएल दीपका विस्तार परियोजना के लिए ग्राम मलगांव में चिन्हाकित भूमि पर स्थित परिसंपत्तियों के सर्वेक्षण के दौरान मुआवजे के लिए तैयार सूची में लगभग 152 मकान के काल्पनिक होने का खुलासा हुआ है। कलेक्टर अजीत वसंत के निर्देश पर एसडीएम कटघोरा रोहित सिंह, राजस्व अमला तथा एसईसीएल दीपका के अधिकारियों की टीम द्वारा किए गए जांच में फर्जीवाडा का भंडाफोड़ हुआ है। मामले में काल्पनिक मकान के मुआवजा को निरस्त करने के निर्देश दिए गए हैं। मामले में काल्पनिक मकानों के कल्पनाकारों के नाम तो सार्वजनिक किए जा रहे हैं ना तो उन पर धोखाधड़ी और साजिश रचने का आपराधिक प्रकरण अब तक दर्ज किया गया है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो कल्पनाकारों में कई सफेदपोश और राजनीतिक पहुंच वालों का नाम शामिल है। दूसरी ओर सूची बनाने वाले प्रशासनिक और एसईसीएल के अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। मामला केंद्र सरकार के मुआवजा से जुड़ा हुआ है, लिहाजा स्वतंत्र केंद्रीय जांच एजेंसियों से जांच की जरूरत भी महसूस की जा रही है। जानकारों का कहना है कि इसमें स्वतंत्र केंद्रीय जांच एजेंसियों को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। दीपका विस्तार परियोजना के लिए कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन एवं विकास) अधिनियम 1957 के प्रावधानों की धारा 9 (1) की अधिसूचना क्र. 3095 दिनांक 24.11.2004 के तहत एसईसीएल दीपका द्वारा ग्राम मलगांव की 63.795 हे जमीन का अर्जन किया गया था।उपरोक्त उल्लेखित भूमि पर स्थित परिसम्पत्तियों का सर्वेक्षण वर्ष 2022-23 में इस कार्य के लिए गठित दल ने एसईसीएल दीपका में पदस्थ कर्मचारियों के सहयोग से पूर्ण किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान कुल 1638 मेजरमेंट बुक तैयार की गई थी, उक्त मेजरमेंट बुक के आधार पर गणना पत्रक तैयार किया गया था। मई 2025 में ग्राम मलगांव में स्थित परिसम्पत्तियों को हटाकर पूर्णतः विस्थापित किये जाने के दौरान यह ज्ञात हुआ कि मेजरमेंट बुक के अनुसार भौतिक रूप से परिसंपत्तियां उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में एसईसीएल दीपका के द्वारा 78 ऐसे मकानों की सूची उपलब्ध कराई गई, जो मौके पर स्थित नहीं हैं, अर्थात काल्पनिक मकान है। इसी प्रकार विस्थापन के दौरान मौके पर उपस्थित राजस्व अधिकारी / कर्मचारी द्वारा 74 मकानों की सूची जिसमें वर्ष 2018 से 2022 के गूगल अर्थ की फोटो संलग्न की गई। गूगल अर्थ की फोटो के अवलोकन से स्पष्ट रूप से पाया गया कि उक्त 74 मकान भी मौके पर स्थित नहीं हैं। एसडीएम ने एसईसीएल दीपका के मुख्य महाप्रबंधक को पत्र लिखकर 152 काल्पनिक मकानों की परिसम्पत्तियों को भुगतान किसी भी परिस्थिति में नहीं करने और यदि किसी मकान का भुगतान कर दिया गया है तो संबंधितों से वसूली की कार्यवाही प्रारंभ कर 15 दिवस के भीतर राशि वसूल करनें, साथ ही सभी काल्पनिक मकानों की परिसंपत्तियों का मुआवजा निरस्त करने निर्देश दिया गया है। इसमें यक्ष प्रश्न तो यही है कि मेजरमेन्ट बुक किसके हाथ में था और मुआवजा पत्रक किसने तैयार किया। भूअर्जन ,मुआवजा प्रकरण की पूरी प्रक्रिया के लिए जिला प्रशासन द्वारा बनायी गयी टीम जिसमे एसईसीएल , भूराजस्व , लोक निर्माण, वन विभाग, उद्यान विभाग के एक दर्जन अधिकारियों को शामिल किया गया था। जिनकी भूमिका की जांच भी जरूरी है। दूसरी ओर वो कौन है जिन्होंने 152 काल्पनिक एक मकानों का या तो मुआवजा उठा लिया है या फिर ऐसी मंशा थी। सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुये 152 लोगों के नाम सामने लाने चाहिए, जिससे वो अपना पक्ष रख सके। ताकि मामले का सच सबके सामने आ सके और जिन अधिकारियों और कल्पनाकारों ने इस पूरे खेल को अंजाम दिया है उन पर कड़ी कार्रवाई हो सके। मुआवजा घोटाला सामने आने के बाद भी कई चीजें अब पर्दे में है। घोटाला हुआ है तो फिर सूची में शामिल लोगों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं कराया जाना भी कई संदेहों को जन्म दे रहा है।

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तीन बार मेजरमेंट बुक करना पड़ा तैयार

मेजरमेंट बुक और इसके आधार पर मुआवजा पत्रक तैयार करने वाले अधिकारियों की टीम अब बेहद गंभीर सवालों के घेरे में आ गई है। अब यह 152 काल्पनिक मकान आखिर किनके नाम पर कागजों में तैयार किए गए, इनकी माप जो की गई और इसके आधार पर कितना राशि का मुआवजा पत्रक तैयार किया गया, उस पत्रक में किन-किन अधिकारियों के हस्ताक्षर हुए, यह फिलहाल सार्वजनिक नहीं हो पाया है। मलगांव की भूमि अधिग्रहण व मुआवजा के मामले में स्थानीय जानकारों के मुताबिक तत्कालीन एसडीएम के कार्यकाल में वर्ष 2023 में मलगांव का अधिग्रहण के लिए नापजोख शुरू हुआ। हालांकि इससे पहले के एसडीएम ने सर्वे शुरू कराया था,पर विवाद के कारण रोकना पड़ा, जिसे 2023 में आए एसडीएम ने फिर शुरू कराया। यह सब काम कागजों में हो ही रहा था कि उनका तबादला हो गया। इसके बाद 688 लोगों का सर्वे उपरांत मेजरमेंट बुक और मुआवजा पत्रक तैयार कराया, फिर संख्या बढ़कर 1638 हो गई। उस समय रहे एसडीएम के कार्यकाल में भी मेजरमेंट बुक और मुआवजा पत्रक तैयार कराया गया। सूत्र बताते हैं कि मलगांव एक ऐसा विस्थापित गांव रहा जहां कि तीन बार सर्वे-नापी हुआ और तीन बार मेजरमेंट बुक तैयार करना पड़ा और फिर पत्रक बनाया गया। यहां एसईसीएल और राजस्व विभाग के अधिकारी अपने-अपने हिसाब से आकर काम करते गए। 1638 लोगों का मेजरमेंट बुक और मुआवजा पत्रक को आगे बढ़ाया गया। अब इन सभी पर सवाल उठ गए हैं ।

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गिरोह की तरह काम किया या फिर मैदानी अमले पर आंख मूंदकर भरोसा

इस समय इतना तो तय हो गया है कि मलगांव में मुआवजा बढ़ाने के नाम पर जो खेल हुआ है वह सही है लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने कोरबा से लेकर रायपुर-दिल्ली तक की गई शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया। साल भर से शिकायतों का दौर एसईसीएल और अलग-अलग स्तरों पर चला।अब, जब यह सारा घोटाला उजागर हुआ तब गांव समतल हो चुका है। इस बीच हाल फिलहाल यह भी पता चला है कि करीब 250 लोग जिनका मुआवजा पत्रक बना है, लेकिन वह मुआवजा लेने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं। तो क्या 152 की यह संख्या 250 हो सकती है? यह सवाल तो जायज है कि तत्कालीन एसईसीएल से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों और मेजरमेंट बुक से लेकर मुआवजा पत्रक में सत्यापनकर्ता अधिकारियों ने एक गिरोह की तरह काम किया या फिर मैदानी अमले पर भरोसा करते हुए आंख मूंद कर पत्रक पर हस्ताक्षर करते गए। बात जो भी हो लेकिन इस बड़े मुआवजा घोटाला की जानबूझकर की गई षडयंत्र पूर्वक साजिश में जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध किस तरह की कार्रवाई होगी, इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई है।

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