खदानों का उत्पादन लक्ष्य बढ़ा पर जमीन की है कमी, तीनों मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका व कुसमुंडा जमीन संकट
कोरबा। जिले में स्थित एसईसीएल के तीनों मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका व कुसमुंडा जमीन संकट से जूझ रहे है। इन खदानों का उत्पादन लक्ष्य बढ़ा दिया गया है, पर जमीन के अभाव में लक्ष्य हासिल करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इसे लेकर कोल इंडिया से वरिष्ठ अधिकारी भी चिंतित हैं। पिछले दिनों कोल सचिव ने दौरा कर राज्य सरकार से चर्चा की। इसके बाद प्रशासनिक स्तर पर जमीन खाली कराए जाने की कवायद शुरू की गई है। चालू वित्तीय वर्ष में एसईसीएल के 2060 लाख टन कोयला उत्पादन करना है। इसके लिए प्रबंधन ने अपनी तीनों मेगा परियोजना पर पूरी ताकत झोंक दी है। एसईसीएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) डा प्रेम सागर मिश्रा स्वयं लगातार खदानों का दौरा कर अधिकारी- कर्मचारियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, पर समस्या का समाधान करने में जमीन संकट बाधा बनी हुई है। जमीन होने के बावजूद अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है। अब भू- विस्थापित लगातार विरोध कर आंदोलन का रास्ता अख्तियार कर रहे है। इससे खदान का उत्पादन प्रभावित हो रहा है।वर्ष 1999 में गेवरा खदान के लिए मलगांव, अमगांव व सुआभोड़ी गांव की जमीन का अधिग्रहण किया गया था। उस वक्त भूमि की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद भी कब्जे में नहीं लिया गया था। अब गेवरा खदान का उत्पादन लक्ष्य बढ़ाए जाने के साथ विस्तार की आवश्यकता है। लेकिन बसाहट होने की वजह से खदान आगे नहीं बढ़ पा रहा। लंबे समय से यहां के भू-विस्थापित अपनी मांगो को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इस बीच कोल इंडिया के सचिव ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया था और सरकार के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की थी । इस दौरान वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए देश की कोयला जरूरतों को पूरा करने अधिग्रहित भूमि की आवश्यकता का ब्यौरा उपलब्ध कराया गया था। साथ ही वर्तमान स्थिति से भी अवगत कराया गया। सचिव के इस दौरे का असर अब देखने को मिल रहा है।
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मेगा परियोजनाओं पर टिकी निगाह
कोल इंडिया में प्रतिवर्ष उत्पादन लक्ष्य बढ़ते जा रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में 8382 लाख टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसमें एसईसीएल का हिस्सेदारी 2060 लाख टन है। वहीं गेवरा से 660, कुसमुंडा से 600 तथा दीपका खदान को 450 लाख टन कोयला उत्पादन किया जाना है। एसईसीएल का सर्वाधिक उत्पादन इन तीनों परियोजना से होना है, इसलिए प्रबंधन की नजर इन खदानों पर टिकी हुई है। जमीन संकट व बार- बार हो रहे आंदोलन की वजह से प्रबंधन को उत्पादन करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।