खदानों में लगातर हो रहे हादसे, बढ़ रहा मौत का आंकड़ा, नियोजित ठेका कंपनियां में बरती जा रही लापरवाही
कोरबा। खान दुर्घटना के मामले में एसईसीएल की खदानें सुरक्षित नहीं है। इसका खुलासा हादसों के संबंध में दिसंबर में कोल इंडिया की ओर से जारी किए गए एक रिपोर्ट में हुआ है। इसमें बताया गया है कि एसईसीएल की कोयला खदानों में पिछले छह साल के दौरान कई बड़ी दुर्घटनाएं हुई है। इसमें 41 मजदूरों ने जान गंवाई है। इस छह वर्ष के दौरान छत्तीसगढ़ में स्थित साउथ इस्टर्न कोल फील्ड (एसईसीएल) स्थित कोयला खदानों में सबसे अधिक हादसे 2020 में हुए थे। जिसमें 12 मजदूरों की मौत हुई थी। इसके बाद से दुर्घटनों की संख्या में कमी आ रही है। लेकिन अभी भी चिंताजनक बनी हुई है।नियोजित ठेका कंपनियां सुरक्षा में कोताही बरत रही है। गत दिनों एसईसीएल साइलों के कन्वेयर बेल्ट में फंसकर एक ठेका मजदूर की मौत हो गई थी। मजदूर ठेका कंपनी सामंता के अधीन नियोजित था। कई वर्षों से कंपनी के लिए काम करता था। यह कोई पहला हादसा नहीं है, जब सामंता के साइड पर ठेका मजदूरों की जान गई हो। इसके पहले भी कुसमुंडा खदान में सामंता कंपनी की साइड पर कई हादसे हुए हैं। पिछले साल मनगांव के पास निर्माणाधीन साइलो से दो मजदूर गिर गए थे। इसमें एक मजदूर की मौत हो गई थी। सामंता कंपनी के साइलो से दो साल पहले भी एक मजदूर कन्वेयर बेल्ट की सफाई के दौरान नीचे गिर गया था। उस समय भी चालू कन्वेयर बेल्ट की सफाई ठेका मजदूर से कराई जा रही थी। घटना से नाराज लोगों ने कुसमुंडा खदान में कई घंटे तक धरना प्रदर्शन किया था। इसके बाद प्रबंधन को आर्थिक मुआवजा देना पड़ा था। अब इसी कंपनी के साइड पर और घटना हुई है। इसके पीछे बड़ा कारण कंपनी सुरक्षा ऑडिट का कमजोर होना है। आज-कल कोयला खदानों में आउट सोर्सिंग में काम करने वाले मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मजदूर ठेका कंपनियों में काम कर रहे हैं, जो कंपनी के लिए कोयला खनन कर रही है। इन मजदूरों को प्रबंधन की ओर से सुरक्षा नियमों की जानकारी नहीं दी जाती है। दी भी जाती है तो वह खानापूर्ति कर दी जाती है। इससे कोयला खदान में काम करने वाले मजदूरों को यह पता नहीं होता है कि कार्य के दौरान कौन-कौन से तरीके हैं, जिसे अपनाकर दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। हालांकि एसईसीएल दावा करता है कि कोयला खदानों में होने वाली दुर्घटनाओं के रोकथाम को लेकर प्रबंधन की ओर से हमेशा गंभीरता दिखाई जाती है। मजदूरों को जागरूक किया जाता है। हर साइड पर सुरक्षा का मूल्यांकन किया जाता है। इसकी सुरक्षा ऑडिट भी अलग-अलग टीम के माध्यम से कराई जाती है।