नदी की जमीन को भी नहीं छोड़ रहे भूमाफिया, राखड़ पाटकर कर रहे कब्जा, पक्की व कच्ची बाउंड्रीवाल बनाकर जमीन हथियाने की कोशिश
कोरबा। औद्योगिक नगरी की शासकीय जमीन बेशकीमती है। इस बात को भू माफिया भी भली-भांति जानते हैं। इसलिए शासकीय जमीनों में बेतहाशा बेजा कब्जा हो रहा है। अब नदी की जमीन को भी कब्जा करने की शुरुआत हो चुकी है। कोरबा से गेरवाघाट होकर प्रगति नगर की ओर जाने वाले रास्ते में नदियाखार स्थित है। इस क्षेत्र से होकर हसदेव नदी गुजरती है जो आगे सर्वमंगला नगर की तरफ चली जाती है। नदियाखार में नदी की सैकड़ों एकड़ जमीन है। आजकल कब्जाधारियों ने नदी की जमीन पर अपनी नजर जमा ली है। लोग अपनी रसूख के अनुसार नदी की जमीन को घेर रहे हैं। इसके चारों ओर पक्की या कच्ची बाउंड्रीवाल बनाकर अंदर में फार्महाउस बना रहे हैं। अपने फार्महाउस तक जाने के लिए लोगों ने रास्ते को भी बनाना शुरू कर दिया है। इसके लिए प्लांटों से निकलने वाली राख का इस्तेमाल कर रहे हैं।कोरबा से गेरवाघाट होकर प्रगति नगर जाने वाले मार्ग पर जहां से पुल खत्म होता है उसके बायीं तरफ कई लोगों के फार्महाउस हैं। सूत्र बताते हैं कि इसमें कई रसूखदार भी शामिल हैं। जिन्होंने अपनी ऊंची पहुंच की बदौलत हसदेव नदी की जमीन को घेरकर कब्जा कर लिया है। यहां तक पहुंचने के लिए सडक़ पर राखड़ डलवा दिया है। इसे बराबर नहीं किया गया है। अब यह राखड़ हवा में उड़ रही है जो आसपास के क्षेत्रों में गिर रही है। इससे लोग परेशान हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रसूखदारों ने यहां बड़े पैमाने पर राखड़ फिकवाया है लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद भी राखड़ को बराबर नहीं किया गया, इस पर मिट्टी भी नहीं डलवाया है।प्रशासन को हसदेव नदी को बचाने के लिए कब्जाधारियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई की जरूरत है। कब्जाधारियों ने भवानी हसदेव नदी के किनारे से लेकर गेरवाघाट, नदियाखार, सर्वमंगला नगर सहित अन्य इलाकों में नदी की जमीन पर काफी कब्जा कर लिया है। इसमें कई ऐसे लोग हैं जो वर्षों से हसदेव नदी किनारे की जमीन पर खेती करते आए हैं। इसके विपरित आजकल नदी किनारे की जमीन पर रसूखदारों ने कब्जा करना शुरू किया है। जो काम आम लोग कई वर्षों में नहीं कर सके उसे रसूखदार एक से दो महीने में ही पूरा कर रहे हैं। नदी की जमीन को कब्जाधारियों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रशासन को बड़े पैमाने पर कार्रवाई करने की जरूरत होगी। वर्तमान में जब जिला प्रशासन अतिक्रमण पर सख्ती बरत रहा है तो लोगों की आस जगी है कि नदी की जमीन भी कब्जाधारियों से खाली करा ली जाएगी। प्रशासन कितना खरा उतरता है यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो सकेगा।
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राख बनेगी जी का जंजाल
फरवरी का पहला पखवाड़ा गुजर चुका है। मार्च और अप्रैल के महीने में जैसे-जैसे तापमान चढ़ेगा इसके साथ ही हवाएं भी चलेंगीं और शहर के चारों ओर फेंकी गई राखड़ लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाएगी। हवा के साथ राख उडक़र आसपास के क्षेत्रों में गिरेगी। कांग्रेस सरकार के शासनकाल में जिस प्रकार से प्लांटों से निकलने वाले राखड़ को सडक़ पर कहीं भी फेंका गया, वही राख अब लोगों के लिए मुश्किल खड़ा करने वाला है। हालात इतने खराब हैं कि शहर के किसी भी मार्ग को ट्रांसपोर्टरों ने राख फेंकने से नहीं छोड़ा है। हर मार्ग पर थोड़ी -थोड़ी दूरी पर राख फेंका गया है।