बंद भूमिगत कोयला खदान से बुझेगी 23 हजार लोगों की प्यास, प्रदेश सरकार और एसईसीएल के बीच हुआ अनुबंध
कोरबा। भूमिगत और ओपनकास्ट खदान में खुदाई के साथ ही पानी सतह में आने लगता है। इसके लिए आधा दर्जन से अधिक हैवी पंप व पाइप लाइन की व्यवस्था की जाती है, ताकि खदान के अंदर का पानी बाहर निकाला जा सके। खदान बंद होने के बाद से प्रबंधन पानी निकालने में सालाना 20 लाख रूपये से अधिक खर्च कर रही थी, लेकिन पानी का उपयोग नहीं हो रहा था। व्यर्थ बह रहे पानी का उपयोग आसपास के कुछ किसान कृषि कार्य के लिए कर रहे थे। अब इस अनुपयोगी पानी का संरक्षण करने महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। एसईसीएल की बंद पवन इंकलाइन भूमिगत कोयला खदान से अनवरत निकलने वाला पानी अब यूं ही व्यर्थ नहीं बहेगा। इससे 13 गांव के 23 हजार लोगों की प्यास बुझेगी। राज्य सरकार 32.5 करोड़ की लागत से जल उपचार संयंत्र स्थापित करेगी। इसके लिए सरकार और एसईसीएल प्रबंधन के बीच अनुबंध हुआ है। जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर रजगामार क्षेत्र में वर्ष 1994 में यह खदान शुरू हुई और सात जुलाई 2011 में कोयले का भंडार कम होने से खदान बंद करना पड़ा। करीब 17 साल तक इस खदान से बी ग्रेड का उत्कृष्ट कोयला एसईसीएल कंपनी को हासिल हुआ। राज्य सरकार और एसईसीेएल के बीच पेयजल आपूर्ति के लिए एमओयू हुआ है। खदान के नजदीक ही स्थित एसईसीएल के एक भवन व परिसर का उपयोग जल उपचार संयंत्र लगाने के लिए किया जाएगा। खदान शुरू होने से आसपास के क्षेत्र का भू- जल स्तर 15 मीटर से अधिक गिर गया। ग्रीष्म में आसपास के कुएं व नाले भी सूख जाते हैं। यहां रहने वाले ग्रामीण खुद का बोर उत्खनन भी नहीं करा सकते, क्योंकि जल स्तर इतना नीचे हैं कि पानी नहीं निकलता। इस समस्या से अब प्रभावित ग्रामीण को निजात मिल जाएगी।जिस खदान की वजह से पानी की किल्लत झेलनी पड़ी, उसी खदान से अब ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल की सुविधा मिलने वाली है। अधिकारियों ने बताया कि कोयला खदान बंद होने के बाद भी पिछले 11 साल से अनवरत खदान से पंप के माध्यम से पानी बाहर निकाला जा रहा। साथ ही पेयजल के उपयोग के लिए जल उपयुक्त है या नहीं, इसकी गुणवत्ता की निगरानी पिछले तीन साल से की जा रही है। परीक्षण के दौरान पानी पीने योग्य पाया गया है। अनुबंध के बाद जल्द ही पेयजल आपूर्ति की दिशा में काम शुरू किया जाएगा।